About कैसे आत्मविश्वास बढ़ाएं

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अकबर बीरबल की कहानियाँ

एक दोपहर एक लोमड़ी जंगल से गुजर रही थी और एक उदात्त शाखा के ऊपर से अंगूरों का एक गुच्छा देखा।

आप जो नहीं पा सकते उसकी बुराई ही करते हैं।

हर कार्य को करने से पहले अच्छी तरह सोचना चाहिए।

बड़े काम के चक्कर में तुम यह भी भूल गए की छोटे-छोटे कामों को करके ही बड़ा काम किया जाता है। छोटे कामों से ही तो बड़े कामों की नीव रखी जाती है, और बड़ा बना जाता है। अब तुम ही बताओ की मेरे सेवा भाव में सहयोग देने के तुम मेरे शिष्य बन सकते हो क्या। 

महर्षि ने उसे बैठने के लिए कहा और वह बैठ गया। महर्षि ने उस दूसरे व्यक्ति से पूछा – कहो वत्स तुम्हे थोड़ी देरी हो गयी, और तुम्हारी हालत ऐसे कैसे हो गयी। 

तेनालीराम की चित्रकारी – तेनालीराम की कहानी

“At forty two years previous, with two daughters just about to complete college, I Stop my six-determine-income position Operating in the poisonous environment and escaped to the cabin by a river. Solitary parenting, a horrible ex-husband, plus a misogynist boss zapped my emotional nicely-becoming to near zero. In 2009, with my kids now developed, I arrived to your summary that lifetime wasn't meant to be so complicated, and undoubtedly there was yet another way. I had been likely to rebuild my everyday living from scratch, even though it intended dropping every little thing more info in the process. I rented a cabin in the wilderness and sat by a river for nine months, living off my savings. I hiked, kayaked, go through, wrote and unpacked my feelings. It absolutely was restorative. Soon after nine months, I discovered a job within the recreation industry.

पंचतंत्र की कहानी: नकल करना बुरा है – nakal karna bura hai

इस प्रसंग से सीख – यह कहानी हमें बताती है की गाँधी जी का ह्रदय कितना विशाल था.

व्यक्ति खिसियाता, तिलमिलाता हुआ मौन रह गया। 

गाँधी जी ने अपने जीवन में कभी भी मांस को हाथ नहीं लगाया. किन्तु एक बार उन्होंने मांस का सेवन किया था. जब गाँधी जी ने मांस खा लिया उस रात को गाँधी जी को पूरी रात अपने पेट में बकरे की बोलने की आवाज महसूस हुई.

विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है.

मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुँचे तो उन्होंने साड़ियाँ दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियाँ उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियाँ देखकर कहा- "साड़ियाँ तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?"

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